Gazab Viral, Digital Desk- (Supreme Court Decision) यदि कोई आवास योजना बैंक के साथ ऋण वसूली विवाद में है, तो उसमें बने फ्लैट न खरीदें। ऐसा करने से खरीदार को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है, जबकि बिल्डर (builder) को कोई नुकसान नहीं होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने इस विषय पर फैसला सुनाते हुए कहा है कि कर्ज में डूबी संपत्ति ((Agreement to Sell-ATS Holder) खरीदने वाले को राहत नहीं दी जा सकती, क्योंकि वह बैंक (bank) का मूल कर्जदार नहीं होता। भले ही वह संपत्ति (property) का पूरा मूल्य चुकाने को तैयार हो, फिर भी उसे न्याय नहीं मिलेगा।
जस्टिस एमआर शाह और सीटी रविकुमार की पीठ ने यह आदेश देते हुए तीसरे खरीदार के पक्ष में दिए गए हाईकोर्ट के आदेश को निरस्त कर दिया। पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट को नीलामी रोकने और एग्रीमेंट टू सेल होल्डर को फ्लैट देने (Providing flat to the agreement to sell holder) का आदेश नहीं देना चाहिए था, क्योंकि सरफायसी एक्ट, 2002 की धारा 13 (4) के तहत बैंक अपने ऋण की वसूली कार्रवाई कर रहा था। पीठ ने कहा कि इस कार्रवाई को रोकने की कवायद बिल्डर ही कर सकता है, यदि वह धारा 13 (8) के तहत योजना की पूरी राशि का भुगतान करने को तैयार हो, एटीएस होल्डर नहीं।
पीठ ने कहा कि कोई भी अदालत एटीएस होल्डर (ATS Holder) को इस बिना पर कि वह कर्ज का पूरा भुगतान कर रहा है, कब्जा नहीं दे सकती। पीठ ने कहा कि बैंक और डीआरटी के आदेशों के विरुद्ध हाईकोर्ट (high court) में रिट याचिका भी नहीं दायर की जा सकती, क्योंकि इसके लिए सरफायसी एक्ट की धारा 17 में राहतों का प्रावधान है। यह व्यवस्था देते हुए सुप्रीम कोर्ट (supreme court) ने नीलामी खरीदार को क्रय प्रमाणपत्र जारी करने का आदेश दे दिया।
क्या है पूरा मामला-
बिल्डर ने मल्टी स्टोरी आवास के लिए स्टेट बैंक ऑफ हैदराबाद (state bank of hyderabad) से कर्ज लिया, लेकिन कर्ज वापस नहीं कर पाया। इसके बाद, बैंक ने सरफायसी एक्ट (bank has implemented the SARFAESI Act) की धारा 13 के तहत संविदात्मक कार्रवाई शुरू की। धारा 13(4) के तहत, बिल्डर की आवास योजना के सभी फ्लैट और अन्य संपत्तियों को जब्त कर लिया गया।
बिल्डर ने इस कार्रवाई को डीआरटी (Debt Recovery Tribunal) में चुनौती दी और डीआरटी ने बिल्डर को मोहलत दी कि वह इच्छुक खरीदारों की सूची लेकर आए, जो उसके फ्लैट खरीदना चाहते हैं जिससे कर्ज की भरपाई की जा सके।
बिल्डर ने बैंक साथ एग्रीमेंट (aggrement) किया कि फ्लैट खरीदार के साथ वह एग्रीमेंट बैंक से अनुमति लेकर ही करेगा। लेकिन बिल्डर ने बिना अनुमति के खरीदार से एटीएस कर दिया। इस बीच बैंक ने संपत्ति को नीलाम (bank auctioned property) करने का नोटिस जारी कर दिया। इसके खिलाफ बिल्डर डीआरटी पहुंचा लेकिन डीआरटी ने बिल्डर की अर्जी खारिज कर एटीएस को व्यर्थ बताया। संपत्ति को बैंक ने नीलाम कर दिया। नीलाम में इस संपत्ति को खरीदने वाले ने 25 फीसदी राशि जमा कर दी।
इस पर एटीएस होल्डर ने आंध्र हाईकोर्ट (Andhra Highcourt) में रिट याचिका दायर कर नीलामी नोटिस को चुनौती दी और याचिका में यह नहीं बताया कि संपत्ति की नीलामी पहले ही हो चुकी है। हाईकोर्ट नीलामी (High court auction) को स्टे कर दिया और कहा कि यदि एटीएस होल्डर (ATS Holder) पूरी रकम जमा करवाता है तो संपत्ति उसे दी जाए। होल्डर ने राशि जमा करवा दी। इसको नीलाम खरीदकर्ता और बैंक ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी।