
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को पश्चिम बंगाल सरकार की याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा कि आरक्षण केवल धर्म के आधार पर नहीं दिया जा सकता। यह याचिका कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने के लिए दाखिल की गई थी, जिसमें 77 समुदायों को अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के रूप में वर्गीकृत करने के राज्य के फैसले को रद्द कर दिया गया था। इनमें से अधिकांश समुदाय मुस्लिम धर्म से संबंधित थे।
आरक्षण धर्म के आधार पर नहीं हो सकता: सुप्रीम कोर्ट
राज्य के सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने कोर्ट को बताया कि यह वर्गीकरण धर्म के आधार पर नहीं बल्कि समुदायों के सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन के आधार पर किया गया था। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि पश्चिम बंगाल में अल्पसंख्यकों की आबादी 27-28% है।
सिब्बल ने दलील दी कि रंगनाथ आयोग ने मुस्लिम समुदायों के लिए 10% आरक्षण की सिफारिश की थी और इनमें से कई समुदाय पहले से ही केंद्रीय OBC सूची में शामिल हैं। उन्होंने यह भी कहा कि उच्च न्यायालय ने आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के 4% मुस्लिम आरक्षण को रद्द करने वाले फैसले पर भरोसा किया, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने उस फैसले पर रोक लगाई थी।
धारा 12 को कैसे रद्द किया जा सकता है? सुप्रीम कोर्ट
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान पूछा कि कलकत्ता हाईकोर्ट ने पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग (अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के अलावा) (सेवाओं और पदों में रिक्तियों का आरक्षण) अधिनियम, 2012 की धारा 12 को कैसे रद्द किया। यह धारा राज्य को पिछड़े वर्गों की पहचान करने की शक्ति प्रदान करती है। खंडपीठ ने इंदिरा साहनी मामले का हवाला देते हुए कहा कि वर्गीकरण और पहचान करना कार्यपालिका की शक्ति है।
हाईकोर्ट ने क्यों खारिज की राज्य की प्रक्रिया?
कलकत्ता हाईकोर्ट ने कहा कि पिछड़ा वर्ग आयोग और राज्य ने तत्कालीन मुख्यमंत्री की सार्वजनिक घोषणा को अमल में लाने के लिए जल्दबाजी में 77 वर्गों को OBC के रूप में वर्गीकृत किया।
आयोग ने आवेदन या आपत्तियों को आमंत्रित करने की उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया। वर्गीकरण में शामिल 42 वर्गों में से 41 मुस्लिम समुदायों के थे, जो धर्म-विशिष्ट आरक्षण का संकेत देता है। अदालत ने कहा कि संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन हुआ है और वर्गीकरण बिना पर्याप्त डेटा के किया गया।
कपिल सिब्बल ने क्या कहा?
कपिल सिब्बल ने कहा कि पश्चिम बंगाल सरकार के पास पिछड़ेपन का मात्रात्मक डेटा है और यह निर्णय बड़े पैमाने पर छात्रों और अन्य लोगों को प्रभावित करता है। हाईकोर्ट के फैसले के कारण लगभग 12 लाख OBC प्रमाणपत्र रद्द हो गए।
उन्होंने कहा कि 2010 से पहले 66 हिंदू समुदायों को पिछड़े वर्गों में वर्गीकृत किया गया था और उनकी प्रक्रिया को कभी चुनौती नहीं दी गई। लेकिन 2010 के बाद मुस्लिम समुदायों को वर्गीकृत करने की प्रक्रिया को हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया।
आगे की सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई 7 जनवरी 2025 तक स्थगित कर दी है। अदालत ने राज्य सरकार से हलफनामा दायर कर यह स्पष्ट करने को कहा है कि सर्वेक्षण की प्रकृति क्या थी? क्या पिछड़ा वर्ग आयोग से परामर्श किए बिना वर्गीकरण किया गया?
आरक्षण का आधार धर्म नहीं, बल्कि पिछड़ापन होना चाहिए। उच्च न्यायालय ने OBC वर्गीकरण में उचित प्रक्रिया का पालन न करने का आरोप लगाया। सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर विस्तृत सुनवाई के लिए समय दिया है।
(FAQs)
Q1. सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण पर क्या टिप्पणी की?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आरक्षण धर्म के आधार पर नहीं बल्कि पिछड़ेपन के आधार पर दिया जा सकता है।
Q2. पश्चिम बंगाल सरकार का तर्क क्या था?
राज्य सरकार ने दावा किया कि वर्गीकरण पिछड़ेपन के आधार पर किया गया है और इसके लिए मात्रात्मक डेटा उपलब्ध है।
Q3. कलकत्ता हाईकोर्ट ने क्या निर्णय दिया था?
हाईकोर्ट ने 77 मुस्लिम-प्रधान समुदायों को OBC वर्ग में शामिल करने की प्रक्रिया को रद्द कर दिया था।
Q4. सिब्बल ने हाईकोर्ट के फैसले पर क्या कहा?
सिब्बल ने कहा कि हाईकोर्ट ने पहले से लागू हिंदू OBC वर्गीकरण को नहीं छेड़ा, लेकिन मुस्लिम समुदायों के लिए अपनाई गई समान प्रक्रिया को रद्द कर दिया।
Q5. अगली सुनवाई कब होगी?
सुप्रीम कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 7 जनवरी 2025 को निर्धारित की है।