High Court : क्या सास-ससुर अपनी बहू को घर से निकाल सकते हैं बाहर, हाईकोर्ट ने दिया ये अधिकार

My Job Alarm – (High Court News) हमारा देश विविधताओं का देश है। यहां हर जाति और संप्रदाय के लेाग रहते है।  लेकिन इतनी विविधता होने के बावजूद भी देश के हर घर का मुद्दा लगभग एक ही है। हर घर में आपको रिश्तों में कलेश और खटास देखने को मिल ही जाएगी। किसी घर में जमीन जायदाद (property dispute) को लेकर कलेश रहता है तो किसी घर में लोग एक दूसरे को देखकर ही जलन करते रहते है। इन सब में झगड़े तक तो ठीक है लेकिन कहीं-कहीं बात इतनी बढ़ जाती है कि घर के बाकी सदस्यों का तो जीना ही दुष्वार हो जाता है। ऐसे ही एक पारिवारीक मामले पर हाल ही में दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) ने इस संबंध में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। 

क्या है कोर्ट का फैसला

अपने फैसले में कोर्ट ने ये साफ कर दिया है कि झगड़ालू प्रवृत्ति की बहू (Daughter-in-law rights) को संयुक्त घर में रहने का कोई अधिकार नहीं है और संपत्ति के मालिक उसे घर से बेदखल कर सकते हैं। उच्च न्यायालय ने कहा कि बुजुर्ग मां-बाप को शांतिपूर्ण जिंदगी जीने का अधिकार है। यदि बहू रोजाना चिक-चिक की आदत छोड़ने को तैयार नहीं है, तो उसे घर से निकाला जा सकता (domestic voilence case) है। 

कोर्ट ने घरेलू हिंसा अधिनियम कानून के तहत दिया फैसला

अपने फैसले में हाई कोर्ट ने ये साफ-साफ कहा है कि घरेलू हिंसा अधिनियम (Domestic Violence Act) के तहत किसी बहू को संयुक्त घर में रहने का अधिकार नहीं है और उसे ससुराल के बुजुर्ग लोगों की ओर से बेदखल किया जा सकता है, क्योंकि वो शांतिपूर्ण जीवन जीने के हकदार हैं। न्यायमूर्ति योगेश खन्ना एक बहू द्वारा निचली अदालत के आदेश के खिलाफ दायर अपील पर सुनवाई कर रहे थे, जिसके तहत उसे ससुराल में रहने का अधिकार (in laws property rights) नहीं दिया गया था।

‘वैकल्पिक आवास प्रदान किया जाए’

इसके अलावा न्यायाधीश ने कहा कि एक संयुक्त घर के मामले में संबंधित संपत्ति के मालिक (property owners rights) पर अपनी बहू को बेदखल करने को लेकर कोई प्रतिबंध नहीं है। न्यायाधीश ने कहा कि मौजूदा मामले में यह उचित रहेगा कि याचिकाकर्ता को उसकी शादी जारी रहने तक कोई वैकल्पिक आवास प्रदान कर दिया जाए। 

मामले के जस्टिस खन्ना ने कहा कि मौजूदा मामले में दोनों ससुराल वाले वरिष्ठ नागरिक हैं और वे शांतिपूर्ण जीवन जीने तथा बेटे-बहू के बीच के वैवाहिक कलह से प्रभावित न होने के हकदार (High court decision on family dispute) हैं।

 
बहू रहती सास-ससूर के साथ और पति रहता किराये पर…

इस मामले पर अपना फैसला सुनाते समय न्यायाधीश ने कहा, ‘मेरा मानना है कि चूंकि दोनों पक्षों के बीच तनावपूर्ण संबंध हैं, ऐसे में जीवन के अंतिम पड़ाव पर वृद्ध सास-ससुर के लिए याचिकाकर्ता के साथ रहना उपयुक्त नहीं होगा। इसलिए यह उचित होगा कि याचिकाकर्ता को घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम (Protection of Women from Domestic Violence Act) की धारा 19(1)(एएफ) के तहत कोई वैकल्पिक आवास मुहैया कराया जाए’। 

इसके अलावा, इस मामले में पति द्वारा भी पत्नी के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई गई (Family dispute case in High court) थी, जो किराये के घर में अलग रहता है और उसने संबंधित संपत्ति पर किसी भी तरह का दावा नहीं जताया है।

कोर्ट ने खारिज की याचिका

कोर्ट के आगे मामला जाने के बाद उच्च न्यायालय ने कहा कि घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा-19 (Section-19 of Domestic Violence Act) के तहत आवास का अधिकार संयुक्त घर में रहने का एक अपरिहार्य अधिकार नहीं है, खासकर उन मामलों में, जहां बहू अपने बुजुर्ग सास-ससुर के खिलाफ खड़ी है। 

संबंधित मामले पर अदालत ने कहा, ‘मौजूदा मामले में सास-ससुर लगभग 74 और 69 साल के वरिष्ठ नागरिक हैं तथा वे अपने जीवन के आखिरी पड़ाव पर होने के कारण बेटे-बहू के बीच के वैवाहिक कलह (marital discord between son and daughter-in-law) से ग्रस्त हुए बिना शांति से जीने के हकदार हैं। 

इस मामले पर उचित जानकारी के मुताबिक इस मुद्दे पर उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ता की अपील को खारिज कर (How to appeal in High Court) दिया और इसके साथ ही प्रतिवादी ससुर के हलफनामे को स्वीकार कर लिया कि वह अपने बेटे के साथ बहू के वैवाहिक संबंध जारी रहने तक याचिकाकर्ता को वैकल्पिक आवास मुहैया कराएंगे। 

क्या है ये बहू और सास-ससूर का मामला?

हमने ऊपर खबर में विस्तार से आपको कोर्ट के फैसले (High court decision) के बारे में तो बता दिया है लेकिन आपको इस पूरे मामले के बारे में बता दें कि सास-ससुर अपने बेटे-बहू के रोजाना के झगड़े से परेशान हो गए थे। इस कलेश के चलते कुछ वक्त बाद बेटा घर छोड़कर किराए के मकान में शिफ्ट हो गया, लेकिन बहू अपने बुजुर्ग सास-ससुर के साथ ही रही। वह घर छोड़कर जाना नहीं चाहती थी। जबकि, सास-ससुर बहू को घर से निकालना चाहते थे। 

इतना कलेश सहन करने के बाद अब इसके लिए ससुर ने भी कोर्ट में याचिका दायर की थी। महिला के ससुर ने 2016 में निचली अदालत के समक्ष इस आधार पर कब्जे के लिए एक मुकदमा दायर (property possession) किया था कि वह संपत्ति के पूर्ण मालिक हैं और उनका बेटा किसी अन्य स्थान पर रहता है और वह अपनी बहू के साथ रहने के इच्छुक नहीं हैं। 

हालांकि याचिकाकर्ता ने तर्क दिया था कि संपत्ति परिवार की संयुक्त पूंजी के अलावा पैतृक संपत्ति की बिक्री (sale of ancestral property) से हुई इनकम से खरीदी गई थी, लिहाजा उसे भी वहां रहने का अधिकार है। निचली अदालत ने प्रतिवादी के पक्ष में कब्जे का आदेश पारित किया था और कहा था कि  याचिकाकर्ता को वहां रहने का कोई अधिकार नहीं (Human Rights) है। कोर्ट नें इस मामले पर अपना फैसला साफ कर दिया है।

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