Live In Relationship: लिव इन रिलेशनशिप को लेकर हाईकोर्ट ने सुनाया फैसला

Himachal Se - – (Allahabad High Court) हमारे समाज में हर दिन रिवाज बदलते जा रहे हैं। यानी कि आजकल लोग शादी के बाद भी अपने पार्टनर को छोडकर तालाक लिए बिना ही गैर पुरूष या गैर महिला के (live in relationship Rules) साथ लिव इन रिलेशनशिप में रह रहे हैं। इस मामले के चलते हाईकोर्ट ने लिव इन रिलेशनशिप को लेकर एक बडा फैसला सुनाया हैं। कोर्ट के अनुसार विवाहित महिला या पुरुष अपने पति या पत्नी से तलाक लिए बिना किसी अन्य के साथ लिव इन में नहीं रह सकते। समाज हितों को देखते हुए ऐसे रिश्तों को किसी सूरत में मान्यता नहीं दी जा सकती। 

 

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने दिया ये बयान –
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने लिव इन रिलेशनशिप से जुड़े एक मामले में सुनवाई पूरी की। इसके बाद फैसला सुनाते हुए कहा कि हिन्दू विवाह अधिनियम के मुताबिक यदि पति-पत्नी जीवित हैं और तलाक नहीं लिया गया है, तो उनमें से कोई भी दूसरी शादी नहीं कर सकता और न ही लिव इन रिलेशनशिप (High Court decision on live in relationship) में रह सकता। ऐसा करना गैर कानूनी तो है ही, साथ ही सामाजिक ताने-बाने पर भी प्रहार है। हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी करते हुए लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाली विवाहिता की याचिका को खारिज कर दिया। साथ ही अपने जीवनसाथी से तलाक लिए बिना लिव इन में रहने पर याचिकाकर्ताओं पर दो हजार रुपये का हर्जाना भी लगाया गया।

यह था मामला –
लिव इन के एक मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट जस्टिस रेनू अग्रवाल ने अपने पति से तलाक लिए बिना किसी अन्य के साथ लिव इन में रहने के दौरान सुरक्षा के लिए लगाई गई एक विवाहिता व अन्य की याचिका को खारिज कर दिया। मामले के अनुसार एक विवाहिता और लिव इन रिलेशनशिप (live in relationship rules) में उसके साथ रहने वाले प्रेमी ने सुरक्षा की मांग करते हुए हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी।  

कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि विवाहित महिला पति से तलाक लिए बिना किसी अन्य के साथ लिव इन में नहीं रह सकती। ऐसे रिश्तों को मान्यता नहीं दी जा सकती, इससे सामाजिक ताना-बाना नष्ट होगा। याचिकाकर्ताओं ने (live in relationship laws in india) अपनी याचिका में कहा था कि दोनों याची लिव इन पार्टनर हैं। उन दोनों ने जिले के एसपी से सुरक्षा मांगी तो कोई सुनवाई नहीं की गई। इसे लेकर हाई कोर्ट में याचिका लगाई थी। इसे खारिज कर दिया गया है।

 

महिला व उसका प्रेमी थे शादीशुदा –
लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिला और उसका प्रेमी दोनों शादीशुदा थे और महिला का पति भी जीवित था तथा प्रेमी की पत्नी भी जीवित थी तथा दोनों याचियों ने अपने जीवनसाथियों से तलाक भी नहीं लिया था। सुनवाई के दौरान यह बात सामने आई तो याचिका को खारिज (rights of live in partners) कर दिया गया। इसे सिर्फ शारीरिक संबंध बनाने के लिए लिव इन रिलेशनशिप में रहना माना गया। 

अदालत में इस मामले में दोनों याचियों के शादीशुदा होने के तमाम सबूत भी पेश किए गए थे। याची महिला दो बच्चों की मां थी और (what is live in relationship) अपने पति से तलाक लिए बिन दूसरे के साथ लिव इन में रह रही  थी। इसे गैरकानूनी मानते हुए याचिका को खारिज कर दिया गया।

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